गाथा जलियाँवाला बाग की



क्या थी उस पल की कहानी,
सुनो यहाँ के कण – कण की जुबानी,
आज शांत सी रहने वाली ये जगह,
इक वक़्त सहमी थी डरे हुए बच्चे की तरह|

देखी है इसने खून की होली.
ओढ़ी है यहाँ हजारों ने मौत की खोली,
बैसाखी के जश्न में ज़हर घुला,
बंद वो दरवाज़ा भीड़ से भी ना खुला|

क्षण भर भी ना लगा लाशों का ढेर लगाने में,
कायरता की कहानी थी मासूमों को आजीवन सुलाने में,
गोलियों ने छल्ली कर दिए थे सीने,
कितनों के माँ बाप भाई बहिन छीने|

लोगों ने इस पावन अवसर पर अपना सब कुछ गवाया था,
ना जाने यह सब करके उस ज़ालिम 'डायर' ने क्या पाया था,
दर्द भरी सिसकियो का गवाह है ये बाग,
आज भी यहाँ की हवाओं में है उस शोक का राग|

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