फिर रोया एक पिता बिटिया की बिदाई पर



आज रोया था एक पिता

बिटिया की बिदाई पर

पछताया था वो

अपने सर पर हाथ धर

आसूँ ख़ुशी के ना थे


फूल थे उसकी अर्थी पर

आज फिर सजी थी वो दुल्हन की तरह

हाथ में चूड़ी मांग में सिंधूर भर

लायी थी दहेज़ की पोटली

गृहप्रवेश हुआ इस चौखट पर

खुद को ढाल लिया पराये आँगन में

फिर भी लगे इलज़ाम उसके सर

ना मिला चैन यहाँ

आज सोई पड़ी है अर्थी पर

फिर लगा था जमावड़ा चार लोगों का

आये थे दूर से सब मगर

बिलखा था वो पिता

क्यों ब्याही बेटी इस घर

दर्द वो सह गयी तकलीफ वो पी गयी

लेकिन चुका ना सकी उनका कर।।

Comments

  1. Such a beautiful post... keep it up guys

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